जयघोष
जयघोष
जो लहराया हवा में वेग से
छू गया आकाश को वह भाला नहीं,
तिमिर की काट थी।
लक्ष्य को उसने यूं भेदा
सर्वत्र मौन, बस नाद उसकी विजय की
अनंत तप का परिचय, शक्ति उसकी विराट थी ।
है शिखर अपराजित नहीं दे
गति अपनी उड़ान को ।
चिर प्रतिज्ञा हो प्रयास की
बेला अरिजित बने विहान की ।।
तोड़ दे तंद्रा को तू भी
कि जयघोष ये संदेश लाता।
हुंकार हो प्रबल विश्वास की तो
तू बने स्व-उदय का विधाता ।।
