भ्रमजाल
भ्रमजाल
क्षितिज पर लगता, मानो आकाश-धरा का मिलन है
ऊंचाई की अनुभूति, हर्षित ये मन है
आकाश की विस्तृतता, धरती की संपूर्णता
दोनों का मिलन ये क्षितिज कितना गहरा भ्रम है ---
पर इस भ्रम में जीवन के रस हैं
संदेह के पलों से उदित, विश्वास के बरस हैं
सच है, ये भ्रम भी जीवन में अपरिहार्य है
कोई बंधन नहीं पर जीवन-धारा का लेखा जोखा, मान्यताएं
आगे बढ़ने, पीछे धकेलने की विवशताएं
कुछ पाकर बहुत कुछ पाने का मोह
एक साक्ष्य है,
कितना अनिवार्य है जीवन में भ्रम का होना ।
संशय की विकरालता से पीड़ित मन
अपरिमितता की व्याधि,
विफलताओं की हताशा से भयभीत मन
एक भ्रम तलाशता है
स्वयं को सौंप जिसे हो,
जीवन की लय में इठलाते
विजयता होने का भ्रम ।।
