साथ निभाना
साथ निभाना
सुनो, ये जो ढलती उम्र है ना
चेहरे पर कुछ सलवट तो आएगी
केशों से कुछ चाँदी झिलमिलाएगी
नैन जो कजरारे होते थे,
अब उनसे कालिमा ताकाझांकी कर चिढ़ाएगी
तुम बोलोगे कुछ, मैं कुछ सुन पाऊँगी
ये मेरे कानो की झुमकी
कुछ का कुछ मुझको बतलाएगी ॥
बच्चे अपनी राहें चुनकर नई धरा
पर अपना परचम लहराएँगे
मुश्किल होगी ये जीवन धारा
जब छोड़ घरोंदा मेरा
मेरे नन्हे पंछी उड़ जाएँगे
मैं मन से खाली स्वयं से अगर बतियाउँ
तुम सम्हाल लेना
दुनियावाले तो मेरा मखौल उड़ाएँगे ॥
ये पाती पढ़कर मेरी
देखो तुम मत घबराना
आजीवन का साथ निभाने को
हो सकता हो थोड़ा पीछे हो हमको जाना।