STORYMIRROR

Rajiv Jiya Kumar

Abstract

4  

Rajiv Jiya Kumar

Abstract

लाल लाल लाल ===========

लाल लाल लाल ===========

1 min
563

उमंग भर कर लाई झोली

रंग बिरंग की सज गई रंगोली

लगे ऐसा जैसे आज है होली और दिवाली 

ठुुमक ठुमक थिरकती अपनों की टोली

जश्न सजा हर चेहरे पर संंग लेकर लाली

संंग संग गूँज रही थी हसीन एक किलकारी

सर्व शक्ति की यह थी सजीव कलाकारी।

बढती चली जीवन की गाङी

पिछङी कभी,कभी रही अगाड़ी

सिर पर ताने मोटी एक पगड़ी

धूूप में,छांव में,आँँधी और बरसात में

करी गई खूब खूब रगड़ा रगड़ी

पहुँचना था उस मुकाम तक कही गई जो कड़ी

पर निगाहेें अगणित  की रही उस पर हीं 

त्याग, तपस्या,समाधि व्रत, उपवास 

संंवार जीत लेेकर आ हीं गई पास 

उल्लास फिर तो मानो परवान चढी

मिलकर सबने थी यह लड़ाई लड़ी ।।

लाल लाल लाल कर दिया खूब कमाल

हुुए खुशी से सब सब मालामाल 

पर वक्त बुनता शायद इधर अपना जाल

छीन जाने को था सब अद्भूत वह ढाल

तले जिसके जीव आश्रित थे सारे निहाल

मत हो परेशां,और न बिगाड़ साँस की ताल।।

लाल लाल लाल तू बेमिसाल 

समझता तू भी हर हाल और चाल

लाल लाल लाल रखा तूूूने बहुत ख्याल 

लाल लाल लाल कर देना हवाले अनल के

होकर रह जाऊँ जब लाचार बेहाल,

लाल लाल लाल 

लाल लाल लाल।।

        


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract