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Nalanda Satish

Abstract

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Nalanda Satish

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सरजमीं

सरजमीं

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आहिस्ता आहिस्ता आईये दीवानों की महफ़िल में

आहट न हो पाए बंजारों की बस्ती में।


तन्हाइयां मनाती हैं जश्न इश्क की इबादत में

शिकायतों का दौर न चलता साँसों की चाहत में ।


फुरसतो का दरिया हैं यादों का महकमा

जीना है पूरी जिंदगी बस पल दो पल में।


दीवानों का इम्तिहान बदलता है अंदाज़े बयां

जज्बातों का मजमा सन्नाटो की खामोशी में।


कुबूल हो गुज़ारिश, दुआ बस यही करना 'नालंदा '

बढ़ेगा जब हद से दर्द सरहदों की सरजमीं में।



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