वो दोस्ती ही क्या
वो दोस्ती ही क्या
वो इंसान ही क्या जिसमें प्यार न हो,
वो सफलता ही क्या जिसमें इन्तज़ार ना हो,
दोस्ती तो दो आत्माओं का मिलन है
पर वो दोस्ती ही क्या जिसमें तक़रार न हो।
वो पानी की क्या जो प्यास न भरे,
वो साथी ही क्या जो विशवास न करे,
एक दोस्त का तो जन्म सिद्ध अधिकार होता है अपने दोस्त को पकाना
पर वो दोस्त ही क्या जो बकवास न करे।
वो दोस्त ही क्या जिस पे ऐतबार न हो
वो दोस्ती ही क्या जिसमें तक़रार न हो।
वो जिंदगी ही क्या जो इम्तिहान न ले,
वो खुशी ही क्या जो मुसकान न दे,
एक दोस्त तो अपने दोस्त की मन की बात तक जान लेता है
पर वो दोस्त ही क्या जो अपने दोस्त के छिपे आँसुओं को पहचान न ले।
वो दोस्त ही क्या जिस पे जान निसार न हो
वो दोस्ती ही क्या जिसमें तक़रार न हो।।
