भगत सिंह
भगत सिंह
बचपन से रागों में ज्वाला उसने आज़ादी की जलाई थी
अंग्रेज़ों को भगाने के ख़ातिर खेतों में बंदूक उसने उगाई थी
फिरंगी अत्याचारी थे
अब कोई ज़ुल्म ना सहने की कसम उसने खाई थी
भूखा रह उसने झुका दिया अंग्रेज़ों को
लोगों में अब आजादी की भूख और क्रांति की लहर उसने जगाई थी
गांधी अहिंसा पर अडिग था पर आज़ादी क्रांति माँगती है
माटी का फर्ज करने को अदा उसने अपनी जवानी दाव पर लगाई थी
लोग कहते हैं आजादी चरखे ने लायी थी
नहीं जनाब आप गलत हैं
आज़ादी तो लहू और बलिदानों से आई थी
कितनी बही खून की नदियाँ कितनों ने जिंदगी अपनी गवाई थी
ये मुफ़्त में नहीं जनाब कर्जों में आजादी आयी थी
जो भर चुका है अब इकलौता वो आज़ादी का ज़ख्म था
उसे उन ज़ख़्मों का क्या दर्द भला
जिसने बेड़ियों में गुलामी की चोट खाई थी
और जनाब भगत अमर है
भगत शहीद नहीं हुआ था उस दिन जनाब
जिसने लगाया गले उस फाँसी के फंदे को मौत आयी थी।