आज भी इन्तज़ार है
आज भी इन्तज़ार है
जो सबको मिल जाता है अक्सर बचपन में
उस दोस्त का मुझे आज भी इंतजार है।
स्कूल में जो तुम्हारे साथ बैठे
साथ आए और साथ घर जाए
जो जी भर तुमसे बातें करें और
जो चुप हो राहो तुम तो तुम्हारी खामोशी पड़ी
जो डाँटे तुम्हें और मनाए भी
जो रुलाये तुम्हें और हँसाये भी
जो चुप्पी को समझना और तुम्हारी आँखों को पढ़ना जानता हो
जो हो तुम्हारी हकीकत से वाकिफ़ और रग रग को पहचानता हो
जो ये समझे की तुम्हारे लिए उसे किसी और के साथ
बाँटना बड़ा मुश्किल सा काम है
क्योंकि अपने इकलौते दोस्त को खोने का
डर शायद दिल में शुरू से विराजमान है
जो समझे तुम्हें की तुम्हें खुद को समझाना नहीं आता
क्योंकि तुम हमेशा दूसरों को समझते आये हो
जो तुम्हें बिन बोले गले लगाए
तुम रो पड़ो अगर तो चुप कराते हुए साथ आँसू बहाये
जिसकी जुबान पर दोस्त के नाम पर तुम्हारा नाम सबसे पहले आए
दुनिया का तो पता नहीं पर जिंदगी के अंत तक साथ निभाए
और जो ना रहो तुम तो शायद वो भी ना जी पाए
जो तुम्हें पहले समझे न कि समझाये
जिसकी आँखों में तुम्हें खोने का डर भी नजर आए।
पर खैर स्कूल तो अब खत्म हो गया और साथ ही
'सिर्फ़ मेरा दोस्त' मिलने की उम्मीद
ये तो बस मेरे ख्याल मेरे विचार हैं
पर ना जाने क्यों उस दोस्त का मुझे आज भी इन्तज़ार है।