अद्भुत चरित्र श्रीकृष्ण
अद्भुत चरित्र श्रीकृष्ण
जीवन की विषमता से
बाहर निकलने का साहस,
जीवन के प्रति अदम्य विश्वास
संगीत की धुन का आकर्षण।
अन्य सब अवतारों से अलग
श्रीविष्णु का यह आठवां अवतार,
अपने में पूर्ण ब्रह्म का अवतार
सोलह कलाओं से सम्पन्न अवतार।
श्रीराम से जो एकदम अलग हैं
उनकी भाँति सब कुछ सहते नहीं,
शिव की भाँति विषपान करके
जो नीलकंठ बनने को तैयार नहीं।
प्रतिकार शक्ति होने पर भी
निन्यानवे गाली सुनने की सामर्थ्य है,
सुदर्शन चक्र के स्वामी हैं
फिर भी हाथ में मुरली है।
द्वारिकाधीश का वैभव है
फिर भी सुदामा सा मित्र है,
कालिय नाग का फन है
उस पर भी मनोहर नर्तन है।
सब कुछ करने की सामर्थ्य है
फिर भी बने पार्थ सारथी हैं,
उन्हीं कृष्ण का जन्मोत्सव है
जो रस का अतिशय उफान हैं।
कण कण में रंग तरंग है
कारा में श्रीकृष्ण का आविर्भाव है,
निशीथ तम में जन्मे जनार्दन
दामिनी की दमक सा प्रकाश है।
भादों मास कृष्ण पक्ष अष्टमी
वायु वेग से जल वर्षण है,
बारिश मन को भिगोती है
मोगरा चमेली की सुगन्ध है।
शीश पर सोहे मोर मुकुट
नयनों में मंद मुस्कान है,
बॉंसुरी एवं माखन मटकी
कृष्ण का अद्भुत बालस्वरूप है।
श्याम रंग के लीलाधारी कृष्ण
हाथों में हरे बॉंस की बॉंसुरी,
पीत वसन कटि काछनी
और उर में वैजयन्ती माल है।
निर्भय होने का मंत्र दिया
इन्द्र का भी निरादर किया,
गौ वन पेड़ पौधे पर्वत
पर्यावरण रक्षा भार लिया।
युद्ध मध्य गीता ज्ञान दिया
संघर्षों के बीच अविचल रहे,
विराट् स्वरूप जागृत किया
निष्काम कर्म का उपदेश दिया।