वक्त - ए - अल्फ़ाज़
वक्त - ए - अल्फ़ाज़
बचपन के वो भूले हुवे किस्से आज याद करते है।
इश्क़ में शामिल थी, वो हवाएं बहुत शोर करती है
पता नहीं क्यों, कभी कभी ऐसा भी मंज़र आता है
बाँट दिया करते थे
हिस्से की सारी खुशियां बचपन से
पता नहीं आज किसकी दुवाएं काम करती है
आजतक तो खामोश बैठे थे
आज हम खड़े होने की सोची थी
वहीं तो हवाएं गाने लगी कि...
लहरें भी अल्फ़ाज़ सुनाते हैं समंदर को
क्या पता कितनी पुरानी कहानी होगी
सूझ बुझ खोकर खड़ा है महफ़िल में।
खुश्बू फैलाने ये कलियां भी पहुंच आई है यहां,
चंद अल्फ़ाज़ सुनाते ही कहने लगे लोग।
गुजरे जमानों से रहते थे यही
फिर कभी नहीं नजरों में आपकी तस्वीर आई है।
कम्बख्त ये अल्फाजों को कैसे रोकें
बहुत दिनों के बाद मंच पे तस्वीर आई है।
✍️ कमलेश रबारी घाना (KdsirGhana)
