जब छोटे थे
जब छोटे थे
जब छोटे थे, तो सब अच्छे थे,
हकीक़त येे, कि जब हम बच्चे थे।
ना तो समझ थी, ना कोई फ़िक्र थी,
जब याद आती हैं, बचपन की बातें।
पता नहीं, क्या हद से ज्यादा दर्द होता है,
जो बचपन का बादशाह थाा, अब गुलाम नजर आता है ।
अरे ओ जिंदगी, ये क्या ताश का खेल तो नहीं है,
हार होती है, रोज पर ये जख्म की कोई दवाई नहीं।
जब छोटे थे, तो सब अच्छे थे। किन्तु,
बड़े होने कि बहुत जल्दबाजी थी।
आज फिरता हूँ अकेला नहीं वो बचपन दोबारा,
ज़ख्म भरे है, इन जिन्दगी में नहीं बता पाता।
जब पढ़ने जाते थे, तब मुक्ति चाहते थेे,
आज संसार भर का नियमों में बंध है।
सही में वो बचपन एक सुवर्ण युग था,
आज फिरता हूं वापस गाव तो निशब्द हूँ।
काश हमने कुछ लिखा ही नहीं,
वक्त था, जब हमने कुछ शिखा ही नहीं।
'बचपन की यादेे'
