हमारे घर का आँगन
हमारे घर का आँगन
क्या बताएं कैसे होती है हमारे आँगन में भोर,
अरनिमा के संग होता है यहाँ पशु पक्षियों का शोर।
शहर वाले जाते हैं देखने जिन्हें चिड़िया घर की ओर,
हमारे तो घर आँगन में ही ठहाके मारते हैं राष्ट्रीय पक्षी मोर।
छा जाते हैं जब काले बादल घनघोर,
तब करते हैं ये मधुर मनमोहक शोर।
इतनी गहरी है आँगन में नीम की छांव,
जहाँ बैठकर कौवे भी करते काँव काँव।
डाल डाल पर जिसकी हमेशा खेलती है चिड़िया,
उसी नीम की छांव में सोई है कितनी ही पीढ़ियाँ।
कोयल सुनाती है जहां घर वालों को भी लोरी,
रात्रि विश्राम करने को आती है यहाँ गौ माता 'गौरी'।
गांव में जब कहीं भी उसे सुरक्षित जगह नही मिलती,
तो अपने बच्चों को भी वो यहीं पर आकर है जनती।
वानर सेना भी यहां पर खूब उधम है मचाती,
और अंत मे जल ग्रहण कर के निकल जाती।
इन्ही सबके संग खेलती है परिवार की लाडली बिटिया,
2 वर्ष की मात्र उम्र है जिसकी, नाम है उसका 'टीया'।
क्या तो पशु और क्या ही पक्षी,
पेड़ पौधों के संग भी उसने अपना बचपन है जिया।
दिन भर बस तुलसी के पौधों को ही वो खाती,
और उसी को भोजन समझ वो अपनी भूख मिटाती।
फिर से एक और पीढ़ी की शुरुआत हुई है नीम के दामन,
बस इसी तरह महकता रहेगा हमारे घर का आँगन।