पंखहीन उड़ान
पंखहीन उड़ान
पंखहीन हैं, फिर भी बहुत,
ऊँची इनकी उड़ान है
पाँव के नीचे जमीं है पर
बांहों में आसमान है,
ये छूना चाहें इन्द्रधनुष को,
चन्दा कभी तो कभी तारे,
भागें पीछे ये बादलों के
अपनी नन्ही भुजा पसारे,
भागें तितली-जुगनू के पीछे
पकड़ें कभी ये कटी पतंग,
पीते धूप-हवा कभी बारिश
भरा है इनमें जोश-उमंग,
चीर हवा को उड़ते-फिरते
है इनकी अपनी ही उड़ान
ये बिन पंखों के वो हैं पंछी
है, धरा ही जिनका आसमान,
भरते अल्हड़-अबोध उड़ान
लेकर भावों में भोलापन,
उम्र का सबसे पड़ाव सुन्दर
नाम है इसका बचपन,
नन्हे-नन्हे इनके हाथों में
अम्बर छूने सी जान है,
पंखहीन हैं फिर भी बहुत
ऊँची इनकी उड़ान हैं।