वो सपना
वो सपना
रात थोड़ा बेचैन सोया,
हां स्वप्न में तो खूब रोया।
रात्रि के तीसरे पहर
देखा मैंने एक सपना,
एक लड़का हां ऐसा लड़का
जिसका कोई न था अपना।
यका यक न जाने कैसे
एक बच्चा स्वप्न से में खोया,
अचानक न जाने कहा से
वो पास आकर न बोला न रोया।
मागन से मरना भला है,
न जाने कैसे वो था जानता,
भूख की अग्नि में जलता किन्तु
स्वयं के सम्मान को पहचानता।
अपने नन्हे हाथों से
मेरे हाथों को खोज लिया,
निर्मल नन्ही सी आंखों से
मन मोह लिया जी मोह लिया।