अंदरूनी हकीकत
अंदरूनी हकीकत
चार दीवार और एक छत के तले लोग कैसे रहते होंगे !
लड़ते होंगे ? झगड़ते होंगे ? यदि इन सवालों का जवाब 'हा' हैं
तो फिर भी ये लोग क्यूँ रहते होंगे ?
चार दीवार और एक छत के तले लोग
कैसे रहते होंगे ?
यूँ तो हम भी रहते हैं चार दीवार और एक छत के तले
खामोशी की धुंध फैली रहती हैं दिनभर
और रात को पिताजी दफ्तर से लौटते हैं
तो अपने साथ खामोशी भी ले आते हैं
दूसरों के घरों में क्या होता होगा ?
यह जानने के लिए मकान की खिड़कियाँ काम नहीं लगती
बहुत मुश्किल से एक धुंधला चित्र खडा होता हैं
जैसे की दफ्तर से लौटना, खाना पकाना,
बच्चों की ट्यूशन क्लासीस कैसी चल रही हैं
इसके बारे में बातें करना
सुबह के लिए क्या सब्जी बनाऊं ये तय करना
कौन सी तारीख से ड्यूटी का टाइम
बदल रहा हैं इसके बारे में सोचना
यह तो होता ही हैं लेकिन
फिर भी कुछ बातें अनकही सी;हर रोज रह जाती हैं
कुछ हकीकते दिमाग में ही अपना घर बना लेती हैं
यह बातें और हकीकतो का बयान होना
या यूँ कहो कि
बाहर निकलना; तबाही ला सकता हैं
यह कहना सचमुच में ठीक रहेगा की इन्सान
अकेला नहींं सोता हैं
बल्कि उसके साथ कुछ हकीकते भी सोती हैं।
सचमुच में इन्सान डरा हुआ हैं
वो यह मानकर और जानकर तसल्ली महसूस करता है
कि पासवाले या पासवाली को मेरी 'यह' हकीकत पता नहीं हैं।
ज्यादातर स्त्री-पुरुष जुडते हैं इसलिए की वो अपनी
आवश्यकताएं एवं कामना पूरी कर सके।
बहुत सोचते हुए, हाँ ….बहुत सोचते हुए यह पता
चलता हैं की इन्सान केवल पैसे कमाने के लिए ही नहीं जोब करता हैं
वह इसलिए भी कीसी कार्य से जुड़ा रहता हैं ताकि
अपने दर्द को कम से कम आठ घंटे तक तो दूर रख सके!
और रात को जब चारों ओर अंधेरा छा जाता हैं
तब शयनकक्ष का बुलावा आता हैं
यह शयनकक्ष स्वयं एक सीसीटीवी हैं
उसकी भी आँखे होती हैं
वह इन्सान के असली चेहरे को देख सकता हैं
लेकिन वो इन्सान को आइना दिखाने की गुस्ताखी
नहींं करता
क्योंकि, क्योंकि वह जानता हैं की
अगर उनको डिस्टर्ब किया तो वो
शर्म से अपना मुंह नीचे कर देंगे
बिलकुल 'आदम और इव' की तरह
और सुबह दफ्तर जाने के लिए जो उत्साह
की आवश्यकता रहती हैं वो नहीं होगा!
इसलिए वह कुछ बोलता नहींं हैं
सिर्फ देखता रहता हैं, मुस्कुराता रहता हैं।