शब्दों का समुदाय
शब्दों का समुदाय
एक गाने में कहा गया है कि
हाँ, हाँ कहा गया है कि" चारो तरफ लगे है
बरबादीओ के मेले…."
यह स्थिति को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता
लेकिन कुछ किस्सो में एसा भि होता है
की चारो तरफ आबादी का मेला भी लगा हुआ होता है
यह मेला कैसे बनता है!
कभी पूछा है अपने आप से ?
मुझे अपने आसपास मेले दिखने लगे हैं
पेड़ एवं पौधे के मेले
पंछियों के मेले
पशु के मेले
मुझे सूरज की किरणों में भी शब्द दिखते है
चाँद के शीतल प्रकाश में भी शब्द खेलते हुए नजर आते है
आते है मुझे नये नये खयाल भी इसी चांदनी में
मैं तो शब्दो के बिस्तर पर सोता हूँ
और तकिया भी शब्दो का इस्तेमाल करता हूँ
शब्दों की ओर लगाव ही इतना
बढ़ गया है कि बात ही मत पूछो !
मै यह नही कहता की मै शब्दों का मास्टर हो गया हूँ
लेकिन हा, इतना तो कह सकता हूँ
ना कि 'वर्क इज अन्डर प्रोग्रेस'
सफर जारी है यह बात ही क्या काफी नहीं है !
एक परिचित बच्चे की मुस्कराहट में
मुझे अनकहे शब्द दिखते है
यदि कोइ सोसायटी का नामकरण की सोच रहा है तो
बता दु की उसका नाम 'शब्दनगर ' भी रख सकते हो
शब्द यहाँ- वहां, इधर- उधर बिखरे हुए पडे है
उनको कोई हाथ थामनेवाला चाहिए ताकी उनको
कोइ न कोई आकार मिले
शब्दों को आकार पाने की ख्वाहिश है
मुझे कइ शब्द कहते है, " मुझे कविता में ले लो ना! "
कइ शब्द मेरे पास कहानी में
अपने आप को पिरोने की ख्वाहिश ले के आते हैं
पुरुष एवं स्त्री कपड़े इसलिए सिलाते हैं
कि उनके तन को उचित आकार मिले
'रेडीमेड' मे आकार पाने की ख्वाहिश रखेंगे तो वो व्यर्थ है
लेकिन हा, वेस्टर्न आउटफिट तो ज्यादातर रेडीमेड मे ही उपलब्ध है!
अगर उचित आकार मिल जाता है तो अच्छी बात है
चीनी एवं शक्कर के डिब्बे में भी अब जान आ गई हो ऐसा लगता है
डस्टबिन भी अपनी जबान मे कह रहा है कि,
"अय बुद्धु अब चल मुझ में डाले हुए कूडे का निकाल कर! "
वो भी शब्द से परिचित हो गये है
उन्हें भी शब्दों से लगाव हो गया है
मुझे लग रहा है की शब्दो की ओर मेरा यह लगाव एवं प्रीति अच्छे है
शब्दों के प्रति इतना स्नेह जरूर रंग लायेगा।
