ख्वाहिशों का बोझ
ख्वाहिशों का बोझ
चलते रहे वो, सफलता के पीछे,
हम ठहर गए, सुकून के तकिए के नीचे।
उन्हें मिली राहें, भरी चमक और शोर,
हमें मिली खामोशी, भीतर की ओर।
सपनों का बोझ उठाए वो उड़ते गए,
हमने आसमान को बैठकर ही देख लिया।
हर मंज़िल की सीढ़ी पर वो चढ़ते रहे,
हम एक छांव में ठहरे, और उसे देख लिया।
ओ नादान, तू क्यों ख्वाहिशों का बोझ उठाए चला,
जीवन की राहों में, क्या-क्या गवांए चला।
इतना जीना जरूरी भी नहीं था, ऐ दोस्त,
जितना तू हर रोज थोड़ा-थोड़ा मरता चला।
सुकून की कीमत तूने शायद समझी नहीं,
हर दौड़ जीतने की कीमत देखी नहीं।
क्या मिला तुझे इस भाग-दौड़ की राह में,
खुद को भूलकर, तू कौन है इस चाह में।
तो ठहर, एक सांस ले, जीवन को जी,
सफलता के पीछे नहीं, खुद में ही सुकून की बसी।
ख्वाहिशों का बोझ हल्का कर थोड़ा,
जरा मुस्कुरा, और इस पल में खो जा।
जिंदगी का हर कतरा, यूं ही नहीं बीतता,
हर सपना पूरा हो, जरूरी नहीं होता।
कभी खुद से पूछ, तू क्या ढूंढ रहा है,
क्या हकीकत में यह वही है, जो तू चाहता है?
सफलता के सिक्के हर हाथ में आते नहीं,
खुशियां अक्सर खरीदने से भी मिलती नहीं।
तेरे हर कदम की दौड़ में क्या पाया?
मंज़िलें पास आईं पर, खुद को खो बैठा।
सुना है, ठहरने में भी है एक सुकून,
जहां दौड़ नहीं, बस है दिल की धुन।
जहां आंखें बंद कर देख सके खुद को,
सपनों के बोझ से मुक्त हो सके मन को।
तू जितनी चाहतों का बोझ ढोता है,
उतना ही तो दर्द चुपचाप संजोता है।
ये सपने, ये ख्वाब, एक छांव बन जाएं,
तेरी हर मुस्कान में तसल्ली पनप जाए।
तो चल, एक नई राह पर कदम रख,
हर ख्वाहिश का बोझ जरा कम कर।
कभी-कभी ठहरना भी एक सफर है,
और खुद से मिलना, सबसे बड़ा हुनर है।
खुद से इश्क कर, खुद पर एतबार कर,
सफर की चहल-पहल से थोड़ा प्यार कर।
कभी दौड़ में नहीं, रुकने में भी है शान,
हर पड़ाव की अपनी है एक पहचान।
तो न ठहरने को मजबूरी समझना,
इस ठहराव में भी है एक गहरा सपना।
जहां तेरा दिल बहे, वहां तेरा मंज़िल,
कभी-कभी सुकून में ही मिलती है असली कामिल।
ख्वाबों के काफिले यूं ही चलते नहीं,
हर ख्वाहिश को अपना कहने से पहले रुक तो सही।
क्या है जो दिल तेरा मांगता बार-बार,
कभी खुद से यह सवाल कर, ये क्यूं है तेरा इख्तियार?
हर मुकाम को छूने की जिद में कहीं खो न जाए,
हर जीत में गुमराह हो, खुद से दूर न हो जाए।
ज़रा ठहर के देख, इस रफ्तार का अंत कहां,
हर ख्वाब तेरा खुद में नहीं, असल जवाब यहां।
यह जीवन एक जुगनू-सा उजाला लिए हुए है,
हर पल में छिपा हुआ एक सवाल लिए हुए है।
कभी हसरतों से बाहर भी देख, नजारा तो कर,
कहीं यह सारा सफर तुझसे दूर न हो जाए, जरा महसूस तो कर।
राहें नई हैं, मंज़िलें बेखबर हैं,
तेरी चाहतें तेरे ख्वाबों का असर हैं।
पर क्या हर जीत तुझे सुकून दे पाएगी?
या हर हासिल की ऊंचाई में एक खोखलापन रह जाएगा?
खुद की खुशियों से समझौता भी एक हुनर है,
हर जीत के पीछे भागने से बेहतर यह सफर है।
क्योंकि जो रुकना जानता है, वो ही चलना समझता है,
और जो खुद से प्यार करता है, वही सही मायनों में जीता है।
तो चल, इस बार सुकून को अपना मकसद बना,
हर ख्वाहिश की नहीं, अपने दिल की सुन, जरा ठहर जा।
इस जिंदगी की रफ्तार में खो न जा तू कहीं,
हर ख्वाब को पूरा कर, पर खुद को न छोड़, यही सच्ची रवानी।
तेरी हर सांस में एक नया सफर छुपा है,
हर कदम में खुद से मिलने का मौका है।
तो दौड़ में नहीं, सुकून में ढूंढ अपनी असल मंजिल,
क्योंकि खुद को पा लेना ही सबसे बड़ी कामिल।
