चलचित्र
चलचित्र
सप्ताह के अंत में प्रकट होती चलचित्र देखने की इच्छा
समय और पैसे होते है तो पूर्ण होती है
हालांकि अभी तो सिनेमागृह भी बंध है
कभी सोचा है की हमारी रोजमर्रा जिंदगी एक छोटा सा
चलचित्र ही तो है
सुबह से ले कर शाम तक
हमें कइ किरदार निभाने पडते है
कुछ अन्जाने किरदार हमारे पास से गुजर जाते है
कोइ कुछ ले के जाता है
और कोइ कुछ दे के जाता है
सब अपने अपने समय पर पेटपूजा कर लेते है
जैसे ही शाम होती है सब अपनी नजर घडी में डालते है
फिर, फिर चेहरे पर मुस्कुराहट ला कर
अपने अपने घर की ओर निकल पड़ते हैं
मंदिरों में घंटों की और घरों में डोरबेलों की
आवाज बजनी शुरू हो जाती है
पूरा दिन बंद रहा घर का दरवाजा खुलता है
कपडे बदल दिये जाते है
कुछ पाने की खुशी और कुछ गंवाने के गम के
भाव चहेरे पे आते जाते रहते हैं
सुबह के लिए सब्जी काटी जाती है
प्याज का 'अमोनिया 'आंखो में आंसू ला देता है
जैसे ही प्रेशर कुकर की सिटी बजती है
मानो दीवारों में जान आ जाती है
घर एक बार फिर से खनकने लगता है
आखिरकार, यह चलचित्र शयनकक्ष में पूर्ण होता है।