तनहाई और सर्दी
तनहाई और सर्दी
आज की सर्दी बदन से लिपट गई है।
रात के साए में मेरी रजाई,
एक कोने में सिमट गई है।
ये कोना ही अब मेरा संसार है।
खिड़की दरवाज़े सब बंद हैं।
मगर नागिन हवा जैसे तैसे घुस जाती है।
मुझे डसती है, मुझ पर हंसती है।
कहती मेरी रजाई कहीं से फट गई है।
सर्प दंश से मेरी रुह कांप रही है।
करकट पर वर्षा बूंदे,
टिप टिप राग अलाप रही हैं।
ये शोर जितना गहराता है।
मेरा बदन उतना कपकपाता है।
पर्दा खिड़की का ज्यों हिलता है।
किसी गेंद की तरह मैं सिकुरता हूं।
हवाओं के छूने से पहले,
कटकटाए दांत लिए ठिठुरता हूं।
ये सर्द रात तनहाई की रात है।
ये सर्द रात एक लम्बी रात है।

