आत्मचिंतन
आत्मचिंतन
कभी कभी जब होता मौन हूँ,
खुद से पूछता हूँ मैं कौन हूँ ?
क्या किसी की वफ़ा में शामिल हूँ ?
या किसी की वफ़ा का क़ातिल हूँ ?
क्या उसका हूँ, जिसे मैं हासिल हूँ ?
या फिर उसका,
जिसके ख्वाबों में शामिल हूँ ।
जो मिला है मुझे,
क्या उसके काबिल हूँ ?
या जो छूट चूका दूर कहीं,
क्या उसके लिए पागल हूँ ?
जो बरस जाए जी भर के,
क्या वो घनघोर बादल हूँ ?
या जो तरस जाए एक बूंद को,
वो शुष्क वृष्टि छाया का आंचल हूँ।
कभी कभी जब होता मौन हूँ,
खुद से पूछता हूँ मैं कौन हूँ ?