वीर अभिमन्यु
वीर अभिमन्यु
चंद्र पुत्र उत्तरा सिन्दूर,
सख्त वक्ष, तख्त भुजाएं,
रक्त बिरक्त हो हो कर,
भर रहा आज उबाल।
वायु गति सा चीरता काटता,
सुभद्रा का ये लाल।
रणभूमि में आज,
मचा रहा भूचाल।
क्षीण भीन तीन तृण,
टूट गए शत्रु बाण।
गरज गरज बरस पड़ा,
सहस्त्र पर भारी पड़ा,
आज महज सोलह साल।
सुभद्रा का ये लाल।
रणभूमि में आज,
मचा रहा भूचाल।
द्रोण, कर्ण, अस्वस्थामा,
दुर्योधन, कृपा, जयद्रथ,
सकुनी ने रची थी एक चाल।
नीति युद्ध की भूल कर,
बुना कायरता की एक जाल,
बूंद बौछार सा तीर छोड़ता,
बिजली स्वरूप कौंधती तलवार।
वीर शोभित होता रक्त बिरक्त से,
इस हट्ठी मन्यु ने कायरों के ,
दिए थे कायर स्वेद निकाल।
सुभद्रा का ये लाल।
रणभूमि में आज,
मचा रहा भूचाल।
एक जुट कुटिल कूट,
अब पड़ने लगे थे भारी।
तोड़ दिया था रथ वीर का,
तोड़ दिया था शस्त्र सारी।
निहत्था सूर रथ पहिया उठाया,
लगा मामा स्वरूप चक्रधारी।
सुदर्शन सा रथ पहिया घूमाता,
टूटता कौरवों पर,
बन बन के महाकाल।
परपंच की एक तलवार,
कायरों ने दिए पीठ में उतार।
लाल के लाल लहू से,
रण भूमि हो गई लाल,
शर्म से शत्रु गाल भी,
हो गए थे लाल।
आज महापुरषों के मध्य,
पुरषार्थ का दिख रहा अकाल,
कोई अट्टहास करता,
कोई मृत वीर का,
खींच रहा था बाल।
सुभद्रा का ये लाल।
रणभूमि में आज,
मचा गया भूचाल।