वो औरत
वो औरत
एक औरत वहां औजार बेचती थी
कभी चाकू, हथौड़ा ,सामान बेचती थी
सुना था सिरहाने उसके एक तलवार रखी है
पर किसी को वो कभी भी ना दिखी है
हर रोज़ किसी मासूम की चीखें सुनकर
कभी लड़ती झगड़ती ,कभी आँसू पोंछकर
बैठ जाता कलेजा उसकी आहें सुनकर
प्रताड़ित हुई नारी, कभी दहेज ,तो कभी बलात्कार पर
ज्वाला उठी आज उसको देखकर
दो कदम ना चल पाई ,गिर गई जमीन पर
रंगों से था सजा बाजार, थी होली सर पर
नारी की कथा हुई यूँ ही तितर / बितर
उस औरत ने लगाई आज तलवार की धार
होली दहन पर कर दिया उस दानव का संहार
उस दिन के बाद , कोई नारी ना वहाँ आँसू पोंछती थी
वह औरत वहाँ अक्सर अब तलवार बेचती थी ......