मजहब
मजहब
ये धरती अमानत थी मानव को
प्रकृती की ओर से
रहना था सब को मिल -जुलकर
बिना मजहब के शोर में
क्यूँ हिन्दू मुस्लिम बने
क्यूँ ऊंच नीच से सने
भोली जनता को पहना दी
राजनीति ने जाति धर्म के हथकड़े
कभी समाज को लड़वाया
कभी सन्तो को मरवाया
क्यूँ सच्चे प्रकरण को
स्कूल syllabus से हटवाया
थी जिसकी कुर्सी उसने
अपना सिक्का चलवाया
भारत की एकता सिर्फ
तस्वीरों में झलकती है
रूह में क्यूँ नफरतें ही पनपती है
हिन्दू मुस्लिम भाई भाई सिर्फ
किताबों में लिखा रह गया
नेकी कर कुएँ में डालो
गीता और कुरान में छपा रह गया
कुछ मुकम्मल जिन्दगी को कर लो
ना पहुँचाओ एक दूजे के दिल को ठेस
ये भूमि है कलाम और भगत का देश।