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Himani joshi

Abstract

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Himani joshi

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हां मैं अब बदल गयी हूँ

हां मैं अब बदल गयी हूँ

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चीजो को कुछ समझने लगी हूं ,

बिन सोचे बोलने से डरने लगी हूं ।

बेवजह मुस्कुराने में डर लगने लगा है ,

सपनों में खोने को भी दिल में मुकरने लगा है।

 कहने लगे है सब अपने बिगड़ गई हूं,

 हां मैं आप बदल गई हूं 


नन्हे कदमों से जब मैंने चलना सीखा था,

 उन पैरों पर घुंगरू कि धुन ने सबके मन को मोहा था।

इठलाती बलखाती खुद की धुन में इतराती थी,

 मां बाबा पर बस हक है मेरा यह हवाओं को भी बताती थी,

 उन यादों को अब ख्यालों में संजोने लगी हूं 

हां मैं अब बदल गई हूं।


 बेबाक हर बात को बोल जाना आसान सा लगता था,

 तब उम्र के छोटे होने से वह बचपना ही तो लगता था।

 ना जाने कब वह बेबाकी चुप रहने में बदल गई अब छोटी-छोटी बातों को मन में रखना मै सीख गई।

 समाज के ठेकेदारों ने प्रमाण दिया मैं समझदार होने लग गई हूं ,

हां मैं अब बदल गई हूं ।


वर्तमान में अपनी स्थिति को बस मैं ही जानती हूं ,

बहुत कुछ छुपाना सीख लिया यह भी मैं मानती हूं।

 ना बहने वाले वो आंसू आंखों में ही सिमट गए,

अब मैं और मेरा अंतर्मन दो भागों में बट गए,

 फिर से छोटे होने को मैं मचल गई हूं।

 हां मैं अब बदल गई हूं ।


सब कहते हैं मां मैं तेरी परछाई हूं,

 तेरे जैसे गुणों को लेकर इस दुनिया में आई हूं।

 पर कभी-कभी क्यों इन गुणों की दीवारों को हम तोड़ना चाहते हैं,

 पर क्या करें फिर से वही संस्कार आड़े जा जाते हैं,

 उन अनकहे सवालों के जवाब पाने को मैं तड़प गई हूं ।

हां मैं अब बदल गई हूं।

                      


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