मेला।
मेला।
वाह रे जहान
लगा रखा
कितना झमेला
जो तूने किए
वाह वाह हुए
जो मैंने किए
उसी परिप्रेक्ष्य में
तुमने तो कृपा करी
हाय हाय कर
किया मेरा झेला,
वाह रे दुनिया का मेला।।
सोच कर देख लिए
वक्त वह भी था
जब सब हमने किए
तुम खड़े रह गए
तब कंंधा एक था मेरा
कहाँ कुछ था तब तेरा
फिर क्यूँ यह झमेला,
वाह रे दुनिया का मेला।।
समेट तो जूठा भी दिए
कदम कदम मिला
सब साथ साथ किए
हर कर्म में तो टिका
चाटुकारिता न सिखा
महारत इसमें बस
तेरा ही प्रस्फुटित हुआ
बन गया तू सब सहज
बिगाड़ने का चेला,
वाह रे दुनिया का मेला।।
घूँट गम के पीये
दर्द अपने यत्न फिर भी
नहीं जा रहे थे सिए
पीड़ा ऐसी निकल रहा था दम
फिर बिन सोच समझ के
गम की मेरी बात
तू निकल पड़ा साधने
लगा घात सहजता से अपनी औकात
कर शुरू जात बाँटने का सिलसिला
वाह रे दुनिया का मेला।।
शक्ति ग़र हो समझने की
तो देख एक बार सोच कर
क्या तुझे है इस तरह मिला
बाँट बाँट कर इनको उनको
पर समय की छड़ी
न छोड़ेगी राजा रंक किसी को
रो रहे हैं हम, रोना तुझे भी है
क्यों की छोड़ सकता नहीं
तरीका अपना फैलाने का ठेलम ठेला
वाह रे दुनिया का मेला।।
सख्त सख्ती महामारी
ने थी कर रखी पूरी तैयारी
कहाँ था तुम तैयार
जो जहर पसर रहा था
तेरे अगल और बगल
उसको तू पी ले
दूर खड़ा था देखता तमाशा
नियति ने जब सब संभाला
फेंक ही गया तू अपना पासा
ग़र इस माहौल में
तू समझता सबको अपना
राह एक निकलती ऐसी
जिसका देख रखा था जग सपना
तुमने तो गर्त में धकेला,
वाह रे दुनिया का मेला।।
बचानी थी जब अपनों की जान
बस अपने लिए तू तो
पड़ा रहा एक लंबी चादर तान
दूसरों पर दोष न सजा
झांक अपने गिरेबां में पहल
दूर तो हो सब गंदगी का रेला
वाह रे दुनिया का मेला।।
