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शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Abstract

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शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Abstract

तुम औरत हो समझो जरा!!

तुम औरत हो समझो जरा!!

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पैदा होते ही जिसे उसकी, कमजोरियाँ गिनवायी जाती हैं,

तुम औरत हो समझो जरा, बात ये हर रोज बताई जाती हैl

समाज में बदस्तूर, पहले देवी तो कभी लक्ष्मी बना कर,

सम्मान से, बड़े रुतबे के साथ बैठाकर, पूजी जाती है, और

फ़िर धीमे से उसको घर में, उसकी औकात बताई जाती हैl

क्यों, गलती करे मर्द और दोषी औरत ही ठहरायी जाती है

अलग अलग रिश्तों के नाम पर, हर रोज ठगायी जाती है l

पैदा होते ही जिसे उसकी, कमजोरियाँ गिनवायी जाती हैं l

तुम औरत हो समझो जरा, बात ये हर रोज बताई जाती हैं,

जीवनदायिनी ताकत को उसकी, कमजोरी बताई जाती हैं ,

इसी बहाने, लक्ष्मणरेखा के जंगल में कैद कर दी जाती है l

हँसने पर भी उसके जहाँ पर, तलवार लटकायी जाती हैं l

तुम बेटी हो, तुम्हारी यही मर्यादा है,

तुम बहू हो, तुम्हारी आवाज बहुत ज्यादा है l

बातों की ये घुट्टी, हर दिन घिस कर, उसे चटायी जाती हैं l

पैदा होते ही जिसे उसकी, कमजोरियाँ गिनवायी जाती हैं l

तुम औरत हो समझो जरा, बात ये हर रोज बताई जाती हैं,

क्यों उसे सरस्वती के पंख देकर, उड़ने दिया नहीं जाता है l

क्यों आदर्शों व असुरक्षा की दुहाई दे, उसे घर की देहरी से,

पराया धन तो कभी बोझ कहकर, विदा कर दिया जाता है,

जिस स्त्री के बिना कोई घर और सृष्टि, चल नहीं सकती है,

उसे दुर्बल कह, स्वतंत्र अस्तित्व को उसके, नकारा जाता है,

पैदा होते ही जिसे उसकी, कमजोरियाँ गिनवायी जाती हैं l

तुम औरत हो समझो जरा, बात ये हर रोज बताई जाती हैं,

कभी परवरिश के नाम पर, कभी रीतिरिवाजों के नाम पर,

अबला है तू ,कूट कूटकर बात ये मन में, यूँ भर दी जाती है,

कि एक स्त्री ही, दूसरी स्त्री के विरोध में खड़ी नजर आती है

पैदा होते ही जिसे उसकी, कमजोरियाँ गिनवायी जाती हैं l

तुम औरत हो समझो जरा, बात ये हर रोज बताई जाती हैं,



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