जुगलबंदी
जुगलबंदी
मानाकि तुम्हारा अहम् बड़ा था,
पर मेरी जिद भी तो कम ना थी,
हर बात, जीत हार का प्रश्न क्यों ?
सुलह की कोई कोशिश भी ना थी,
हम तेरी परवाह की उम्मीद में ही,
बस,समझौते ही करते रह गए और
तुमने उसे अपनी जीत ही बना ली,
समझौतों को, मेरी कमजोरी समझ,
मुझे छोड़कर, सभी राहों पर आपने
आगे बढ़ने की तो,आदत ही बनाली,
हमने भी कुछ वक्त ही इंतजार किया,
अकेले रहने की अपनी,आदत बनाली,
घर गृहस्थी की चादर ओढ़कर हमने,
बच्चों के ही संग एक दुनियां बसा ली,
पति पत्नी भले ही ना बन पाए हो,पर
माता पिता की भूमिकाएँ शानदार थी,
जीवन के दो हाशिए पर खड़े हुए हम,
ये कठिन जुगलबंदी ही,एक आस थी l