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शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Inspirational

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शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Inspirational

बतादूँ क्या हूँ "मैं"

बतादूँ क्या हूँ "मैं"

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मैं बस एक शरीर नहीं हूँ,

मैं यौनसुख की पूर्ति नहीं हूँ,

मैं उगते सूरज की लालिमा हूँ,

अंधेरे में चमकता हुआ चाँद हूँ,

जिस पर तुम खड़े हुए हो,उसे

ठहराव देती तुम्हें, जमीन हूँ मैं,

जो रोज नयी नयी उड़ान भरते हो,

उस ऊँची उड़ान में शामिल हवा हूँ मैं,

जिस सफ़लता के तुम गुण गाते हो,

उस सफ़लता को पाने की प्रेरणा हूँ मैं,

जिस लक्ष्य के पीछे भागते हो वह भी मैं,

जिस पौरुष की तुम बातें करते रहते हो ना,

कभी सोचना कि, उसे मायने भी देती हूँ मैं,

सोचा है कभी,जिस घर को पाना चाहते हो,

उस घर में 'मैं' ही ना हुई तो क्या करोगे भला,

तुम उच्श्रृंखल,असीमित,उन्मुक्तता के भंडार थे,

उसे दिशा देती, बंधनो की डोर से बाँधती हुई मैं,

मैं ही जीवन, मैं ही पथ, मैं ही गन्तव्य, मैं ही पूर्ति,

तुम्हारे वज़ूद की 'वज़ह'भी मैं,तो अभिमान क्यों हैं?


मैं हूँ तो तुम हो, और तुम्हारे लिए ही तो, मैं हूँ फ़िर,

तभी ये संसार हैं, तो कभी ये क्यों नहीं सोचते तुम,

हमेशा आगे चलने की ही, तुम बात करते हो, कभी 

साथ साथ चलने की मेरे, क्यों नहीं सोचते हो तुम,

हमेशा अपने लिए सारे विकल्प खुले रखते हो, कभी

'हम' बनने के विकल्प पर, क्यों नहीं सोचते हो तुम,

तुम हमेशा "मैं" की बात करते हो,तो सोचो जरा,फ़िर

तुमसे कुछ ज्यादा ही हूँ मैं, इसलिए सोचा आज कि,

तुम्हारी "मैं" की भाषा में ही बता दूँ तुम्हें क्या हूँ "मैं"।



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