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शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Abstract Inspirational Others

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शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Abstract Inspirational Others

खामोशी के तलबगार

खामोशी के तलबगार

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खामोशियों के 

तलबगार तो बहुत है, 

पर सौदा तो 

शोर से ही करते हैं l

रिश्ते तो शोर से है, 

पर हमेशा 

खामोशी की ही 

ख्वाहिशें है, 

ऐसा क्यों है? 

रिश्ते से पहले तो 

शोर कितना 

पसंद था तुम्हें 

फ़िर उससे 

जुड़ते ही 

खामोशी के बुर्के में 

पसंद क्यों है ?

शोर की बेबाकी 

कितनी पसंद थी तुम्हें, 

पर अब खामोशी के 

शर्मिलेपन की 

तुम्हें तलब क्यों है ?

मुझे तो लगा था 

कि तुम मेरे "उस"

शोर को समझोगे,

पर जिससे नफ़रत थी 

तुम उसी भीड़ का 

हिस्सा क्यों हो ?

शायद शोर  

बेबाक लफ़्ज़ों का 

पुलिन्दा है 

और खामोशी के तो 

लफ़्ज भी नहीं होते 

क्यों यही बात हैं ना !!  



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