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शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

Abstract Others

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शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

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खामोश रात का सफ़र

खामोश रात का सफ़र

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खामोश रात का सफ़र

क्या पूरा होता है

कभी

बिस्तर की सिलवटों में

शुरू तो होता है

कोई लालसा

लेकर आता है

तो किसी को

रुह की तलाश

होती है

किसी को

जिस्म तो मिलता है पर

लम्हों की गरमाहट

फ़ना होती है

कोई रूह को ही

तलाशता रह जाता है

बस जिस्म से बात होती है

दोनों ही गुमशुदा हैं

बिस्तर के दो

किनारों में

कभी तो झाँकते

एक दूसरे के

किनारों पर

ये खामोश रात का सफ़र

मुकम्मल होता

तो शायद

बोझिल दिन का सफ़र भी

आसान हो जाता



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