हर तरफ एक धुंध है, बेईमानों की बस्ती आजकल इतनी जबरदस्त क्यों है... हर तरफ एक धुंध है, बेईमानों की बस्ती आजकल इतनी जबरदस्त क्यों है...
लाख लोग रोते रहें झकझोर मुझे उठाते रहें। बेपरवाह सा मैं, बस मुस्कुरा रहा था लाख लोग रोते रहें झकझोर मुझे उठाते रहें। बेपरवाह सा मैं, बस मुस्कुरा रहा थ...
जितना चाहो उतना भर दो फिर ये मन की बात ना होती। जितना चाहो उतना भर दो फिर ये मन की बात ना होती।
स्वार्थ की चादर ओढ़कर, अनजान हो जाते हैं। स्वार्थ की चादर ओढ़कर, अनजान हो जाते हैं।
चंचल हवाओं की सरसराहटों में चंचल हवाओं की सरसराहटों में
निर्धन हो तुम पर है पास तुम्हारे सुनहरी नींद की संपदा ओह, कितने तुम संतुष्ट ! निर्धन हो तुम पर है पास तुम्हारे सुनहरी नींद की संपदा ओह, कितने तुम संतुष...