कुछ यूँ जीवन
कुछ यूँ जीवन
आसान-सी जिंदगी
की आरजू किसे है,
सरलता से जीवन की
तरफ अग्रसर कौन है,
हर तरफ एक धुंध है,
बेईमानों की बस्ती आजकल
इतनी जबरदस्त क्यों हैl
रंग हजार भरें हैं अमीरी में
इनकी तो हर रोज होली है,
मन चाहे चीजों को पाले
इनकी तो तैयारी है।
गरीब रंगो को जोड़ते हैं
रिश्तों को पिरोते हैं,
मोती की तरह
ये संजोग के रखते हैं।
बस्ती-बस्ती बोझ हो गई,
मन भी बहुत व्याकुल-सा है,
घिस-घिस कर अब चूर हो गया,
हर सपना बोझिल-सा है।।