माँ
माँ
माँ के आंगन की आजाद चिडिया थी
ससुराल आई पता नही कब
रिवाजों में कैद हो गई
उड़ती फिरती जो पतंग थी
मान्झे से कटकर ढेर हो गई
आज माँ का वो सवाल याद आया
चेहरे पर मुस्कान रख ,अश्क आंखों में तर आया
सवेरे जगते ही माँ पूछती थी खाने में क्या बनाऊं
आते ही ससुराल मैने सबसे पुछा खाने में क्या बनाऊं
पुरे परिवार के खाने के बाद
माँ खाना खाती थी,कुछ कहते तो कहती
बेटा मेरा पेट भर आया
ससुराल आई और सिर्फ यही सुना
माँ ने नही सिखाया
थोड़ा सा भी दर्द हो माँ पहचान जाती थी
खुद की कोई तकलिफ ना कभी दिखाती थी
जीवन की कठिनाइयों में माँ तुम याद आ जाती हो
दूर रहकर भी मुझे हिम्मत दे जाती हो।