जिंदगी
जिंदगी
रस्सी जैसी जिंदगी तने तने हालात
एक सिरे पर ख्वाहिशें, दूसरे पर औकात
उम्मीद का दामन थामे,ढल रही हर शाम
माथे पर शिकन, होंठों पर मुस्कान
ना कोई धर्म, है ना कोई जात
दो रोटी की भूख, दो निवाला भात
मिल जाए तो सुकून से
खिदमत में फैला दे खुदा के
खाली अपने दोनों हाथ
कितने ही लोग हैं जिनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है
फिर भी वे उपरवाले से तनीक भी नाराज नहीं है
जैसा मिला उसमे ही खुश हैं
उनकी सोच हमसे कितनी ऊंची है,हमें जितना मिला उसके
लिए ना हम कभी ईश्वर को धन्यवाद देते हैं,
बल्कि जो हमारे पास नहीं है उसकी बस शिकायत करते हैं
जो हमारे पास है ,वो तो बस किसी के लिए एक ख्वाब है
तो चलिए जिंदगी में कुछ अलग करे,
खुश रहने की सलाह ना देकर, किसी के खुशियो की क्यूँ ना वजह बने !
