बंजारों की बस्ती में हरियाली
बंजारों की बस्ती में हरियाली
खेतों की हर उस हरियाली से, ऋतु बसंत मतवाली से,
काश महक जाये जिंदगी हमारी, उसकी हर डाली से,
बेजार सी हमारी इस जिंदगी में, रंग फिर से भर जाए,
तब जीवन महकेगा बंजारों का, उपवन की खुशहाली सेI
फूलों की खुशबू लिए जीवन में आये फिर मधु मास है,
दुख के बाद सुख फिर आएगा यह हमें पूरा विश्वास है,
आज हम बंजारे जिस डगर पर चलकर ठोकरें खा रहे,
कल प्यार की गाथा से बनने वाला एक नया इतिहास हैI
पत्तों की हरियाली फिर से मिलेगी मेरी विवशता देखकर,
महफिल फिर जमेगी दोस्तों की जब हम तुम बैठेंगे मिलकर,
अरमान कई दिल में हमारे हमने आशाओं के बाग लगाए,
आशाओं के बाग में फिर से फूल खिलेंगे पल-पल मुस्कराकर,
हे ईश्वर अब हम बंजारों को वंचित न रखो इन हवाओं से,
कहीं बह न जाएं हम समय के नित बहने वाली उग्रताओं से,
देखा हमेशा फिजा में झड़ गए फूल भी खुशबू देते रहते हैं,
मशीनों धरा हमसे सीखने दो हमें भी कुछ इन फिजाओं से,
हम बंजारों को हरियाली देकर फिर से उड़ने के पंख लगा दो,
थके हारे मुसाफिर हैं हम, तुम सपने हमारे फिर से सजा दो,
इस उपवन में अधखिली कलियों सा है हमारा भटकता जीवन,
इसमें जब कभी रात अमावस की हो, तो तुम दीप एक जला दो,
कैद होकर पिंजरे में परतंत्र पंछी सा हम जी रहे थे अपना जीवन,
खुले आसमान में सितारों को टिमटिमाते देखकर कट गया यौवन,
जीवन में हम बंजारों ने बसंत कहाँ देखा सिर्फ पतझड़ को ही पाया,
इस हरियाली को देखकर ही हमने पहली बार देखा जीवन दर्पण I