"शिव"
"शिव"
हमारे भीतर बसा हुआ शिव है
बर्हि हर जगह बसा हुआ शिव है
जो गर न किसी घट में शिव है
फिर वो तत्व बस निर्जीव है
पत्थर बनता, भक्ति की नींव है
निर्जीव होकर ,बनता सजीव है
जिसका मन होता यूं निर्मल है
जैसे होता पवित्र गंगा जल है
उसे हर जगह दिखता शिव है
जो करता जग में भक्ति शिव है
उसे मृत्यु करती सजदा नित है
संपूर्ण जगत के रचयिता शिव है
शिव इच्छा बिन न जन्मते जीव है
मुख से बोलिये रोज आप शिव है
कर्ण से रोज सुनिए आप शिव है
तभी जीवन बनेगा साखी पवित्र है
जो तत्व निकला, भीतर से शिव है
यह तन और मन व्यर्थ चीज है
शिव ही जगत में सच्चे मीत है
बाकी सब स्वार्थ से रखते प्रीत है
जो करता है, यहां पर शिव भक्ति,
वो रोज पाता है, नित नई शक्ति,
भक्ति से मिलती सदा ही जीत है
शिवभक्ति से खत्म हो जाते है,
यहां पर लख चौरासी के गीत है
भक्ति से बनती आत्मा पुनीत है
शिव तत्व-अणु, शिव सबके मूल है
शिव बिना पूरा ब्रह्मांड निर्मूल है
ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शिव अधीन है
शिव ही परम योगी, ॐ बीज है
शिव को सांस-सांस में स्मरण करे,
फिर देख आनंद कैसे पाते नित है
शिव ही हर रोशनी का मूल दीप है
शिव ही हार और शिव ही जीत है
शिव बिना यह जिंदगी बस कीच है
भक्ति से ही होती जिंदगी जीवित है
बिना भक्ति, यह जिंदगी बस रीत है
जो जिह्वा शिव बोले, वो पुनीत है
जिसका रोम रोम ही शिव बोले,
वो दुनिया में शिव का प्रतीक है
शिव-भक्ति में भूल जा सबकुछ
शिव दिखेंगे तुझे सबमे नित है
शिव देख, शिव सुन, शिव ही बोल
तेरा जन्म होगा, विजय पुलकित है
जय शिव