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AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

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AJAY AMITABH SUMAN

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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:23

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:23

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मृग मरीचिका की तरह होता है झूठ। माया के आवरण में छिपा हुआ होता है सत्य। जल तो होता नहीं, मात्र जल की प्रतीति हीं होती है। आप जल के जितने करीब जाने की कोशिश करते हैं, जल की प्रतीति उतनी हीं दूर चली जाती है। सत्य की जानकारी सत्य के पास जाने से कतई नहीं, परंतु दृष्टिकोण के बदलने से होता है। मृग मरीचिका जैसी कोई चीज होती तो नहीं फिर भी होती तो है। माया जैसी कोई चीज होती तो नहीं, पर होती तो है। और सारा का सारा ये मन का खेल है। अगर मृग मरीचिका है तो उसका निदान भी है। महत्वपूर्ण बात ये है कि कौन सी घटना एक व्यक्ति के आगे पड़े हुए भ्रम के जाल को हटा पाती है?  


कुछ ही क्षण में ज्ञात हुआ सारे संशय छँट जाते थे,

जो भी धुआँ पड़ा हुआ सब नयनों से हट जाते थे।

नाहक ही दुर्योधन मैंने तुम पे ना विश्वास किया।

द्रोणपुत्र ने मित्रधर्म का सार्थक एक प्रयास किया।


हाँ प्रयास वो किंचित ऐसा ना सपने में कर पाते,

जो उस नर में दृष्टिगोचित साहस संचय कर पाते। 

बुद्धि प्रज्ञा कुंद पड़ी थी हम दुविधा में थे मजबूर,

ऐसा दृश्य दिखा नयनों के आगे दोनों हुए विमूढ़।


गुरु द्रोण का पुत्र प्रदर्शित अद्भुत तांडव करता था,

धनुर्विद्या में दक्ष पार्थ के दृश पांडव ही दिखता था।

हम जो सोच नहीं सकते थे उसने एक प्रयास किया ,

महाकाल को हर लेने का खुद पे था विश्वास किया।


कैसे कैसे अस्त्र पड़े थे उस उद्भट की बाँहों में ,

तरकश में जो शस्त्र पड़े सब परिलक्षित निगाहों में।

उग्र धनुष पर वाण चढ़ाकर और उठा हाथों तलवार,

मृगशावक एक बढ़ा चला था एक सिंह पे करने वार।


क्या देखते ताल थोक कर लड़ने का साहस करता, 

महाकाल से अश्वत्थामा अद्भुत दु:साहस करता? 

हे दुर्योधन विकट विघ्न को ऐसे ही ना पार किया ,

था तो उसके कुछ तो अन्दर महादेव पर वार किया । 


पितृप्रशिक्षण का प्रतिफल आज सभी दिखाया उसने,

अश्वत्थामा महाकाल पर कंटक वाण चलाया उसने।

शत्रु वंश का सर्व संहर्ता अरिदल जिससे अनजाना,

हम तीनों में द्रोण पुत्र तब सर्व श्रेष्ठ  हैं ये माना।



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