जो बदल जाए वो पिंकी कैसी
जो बदल जाए वो पिंकी कैसी
ब्रांडेड कपड़ों से मेरी पहचान मत करना,
मैं तो रिश्तों के ताने बाने से सजती हूँ।
कभी बेटी,कभी माँ,तो कभी प्रियसी बन,
उनके तार तार को सहेज कर उसमे उलझती हूँ।
कद छोटा लगेगा आपको मेरा,
पर हाई हील मेरे पल्ले नहीं पड़ती।
कोई प्यार से तारीफ कर दे मेरी,
बस, मैं उससे हीं खुद को नापति फिरती हूँ।
पिज़्ज़ा बर्गर तो आज भी मज़बूरी में चखती हूँ,
सामने वालों को ना नहीं कह पाती बार बार।
ठेले से भूंजा,और अंगीठी का भुट्टा कोई दे दे,
मैं सम्मोहित हो उसे हीं प्यार समझ बैठती हूँ।
अंग्रेजी बोलना मुझे आज भी नहीं आया सही से,
शायद तभी कुछ महफिलों से खुद को छुपाती हूँ।
दिल की बात चाहे बोलना हो या लिखना,
मैं हिंदी को हीं अपना कर, हर अनुभव बताती हूँ।
आँख भर आती हैं जल्दी मेरी,मैं हँसती भी बहुत हूँ,
अगर आपको मेरी झुर्रिया दिखे तो तजुर्बे के नादान हैं आप।
एक एक लाइन मेरे माथे की,एक एक कहानी सुनाएगी,
चाहे जितनी भी तकलीफ़े आए,मैं उल्टा उन्हें हीं सताती हूँ।
घूम तो आती हूँ देश विदेश अब, पर लत लगती नहीं,
वेश भूषा,रहन सहन कहीं और की, मुझपर फबती नहीं।
पर हाँ!सालों बाद भी कभी गाँव जो मेरे मैं जाती हूँ,
एहसास सा होता है तब मुझे, मैं उसे हीं तो दिल में बसाती हूँ।
शायद मैं एक अच्छी पत्नी नहीं, आधुनिकता की कसौटी पर,
जल्दी कुछ अपनाती नहीं अपने प्रियवर को रिझाने को।
पर ज़ब वो मेरे रहते अपने परिवार को महफूज समझते है,
इस बात को जान कर मैं खुद को अलग सी गृहनी पाती हूँ।
बच्चों के लिए भी एक अप टू डेट माँ नहीं बन पाऊँगी,
गैजेट के इस युग में आखिर कितना कुछ अपनाउंगी।
झूले की जगह मैंने उन्हें गोद दिया है, ये छोटी बात नहीं,
आज भी उन्हें बताते बताते मैं अपनी ऑंखें भींगाती हूँ।
आखिर ये जरूरी तो नहीं कि जो सब करें,वो मैं भी करूँ,
पल पल बदलती दुनियाँ में, क्या मैं भी सबकी नकल करूँ ?
आप चाहे जो करें, मुझे मेरे हद में हीं रहना भाता है आज भी।
रहूँगी ऐसी ही हमेशा जो बदल जाए भला वो पिंकी कैसी !
