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Hemant Kumar Saxena

Abstract

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Hemant Kumar Saxena

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आकाश तेरा छोर कहां है

आकाश तेरा छोर कहां है

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ए आकाश तेरा छोर कहां है,

जीवन का वो मोड़ कहां है,

मैं बढ़ रहा हूं तेरी ओर,

मंज़िल पता नहीं मेरी,

इरादा किया नहीं मैंने,

सागर में जैसे उठने वाली,

हिलोर कहां है,

ए आकाश तेरा छोर कहां है,,,,,,,,

बचपन से चल रहा हूं,

संसार की होड़ में,

बहुत संघर्ष किए हैं मैंने,

कागज से पतंग बनाने में,

मुझे मालूम है आकाश,

तू गला भी सकता है,

पतंग उड़ा भी सकता है,

मांझा तो मेरे पास है,

बता डोर कहां है,

ए आकाश तेरा छोर कहां है,,,,,,,



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