यहांँ साथ किसके चलता कौन है
यहांँ साथ किसके चलता कौन है
किस उलझन में है ऐ- मुसाफ़िर तू, आखिर क्यों बैठा मौन है,
किसकी राह देख रहा है तू, यहां साथ किसके चलता कौन है,
दरख़्तों के सूख जाने पे तो, पंछी भी घोंसला नहीं बनाते वहाँ,
जब ख़त्म हो जाती है ज़रूरत, आखिर रिश्ता निभाता कौन है,
बेवजह किसी की खैरियत तो क्या पूछे, देखते भी नहीं लोग,
जब तक खास तब तक पास अब तेरी परवाह करता कौन है,
दौड़ता हुआ चला जाता था तू अपनों की एक ही आवाज़ पर,
तूने तो कितनी बार पुकारा उन्हें, इतना इंतजार करता कौन है,
व्यर्थ जाएगा ये इंतजार तेरा, क्यों गंवा रहा है तू व़क्त़ अपना,
मतलब परस्त इस दुनिया में, हृदय के भाव समझता कौन है,
तुम्हें तुमसे बेहतर तुम्हारा साथी, नहीं मिल सकता कोई यहाँ,
वादे तो बहुत लोग करते, साथ चलने का पर निभाता कौन है,
और ज़रूरी तो नहीं साथ चलने वाला हमारा हितैषी ही होगा,
यहां लोगों के हैं लगे चेहरे कई असली चेहरा दिखाता कौन है,
कौन देगा साथ तेरा मुफ़्त का तो यहां कफ़न भी नहीं मिलता,
स्वार्थी है दुनिया, बिना मतलब के अपनापन दिखाता कौन है,
जिसे पनाह देते हम वही खींच लेते हैं, पैरों तले ज़मीन हमारी,
तू किससे कहेगा दर्द-ए-दास्तां, यहाँ एहसास समझता कौन है,
सीख ले चलना अकेला, मतलबी दुनिया की फितरत पहचान,
जिसके लिए तूने खुद को भुला दिया, देख वो भी बैठा मौन है।
