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Hemant Kumar Saxena

Abstract

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Hemant Kumar Saxena

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सच्चाई

सच्चाई

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है मंहगाई बड़ी फिर भी खर्च करता हूं,

ना बचा पाता हूं पैसा मर्ज करता हूं,

सोचता हूं इकट्ठा कर लूं काम आयेगा,

ज्यादा हो जाए तो टैक्स भरता हूं,

जब जेब हो खाली तो परेशान मैं हूं,

पैसा ज्यादा कमा लूं तो नुकसान में हूं,

कब क्या हो जाए मेरा अनजान मैं हूं,

आज हूं सलामत बता रहा हूं,

क्या पता ना जाने कल का शमशान मैं हूं,

बात झूठी नहीं कहता सच्ची बात है,

सुनने में कच्ची सही पर अच्छी बात है

पैसा कितना भी हो जेब में चाहे,

मैं जानता हूं इन्सान कि तेरी क्या औकात है।



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