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मिली साहा

Abstract

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मिली साहा

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ए ज़िन्दगी न पूछ मेरा हाल

ए ज़िन्दगी न पूछ मेरा हाल

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ए ज़िन्दगी न पूछ मेरा हाल तू कि मैं खुद की तलाश में हूँ,

चल रहा गुमशुदा राहों पर बस एक उम्मीद की आस में हूँ,


मुश्किलें हज़़ार राहों में हर पल खुद से जंग की है तैयारी,

वक्त ने पकड़ी रफ्तार और मैं अगर मगर और काश में हूँ,


न दुख की चिंता, न खुशी की चाहत, न ख़्वाब, न तमन्ना,

खुद से मेरी कैसी होगी मुलाकात बस इसी एहसास में हूँ,


जाने कितने इम्तिहान बाकी हैं अभी हाथ की लकीरों में,

हर इम्तिहान पार होगा ज़रूर चल रहा इसी विश्वास में हूँ,


अब‌ रुकना नहीं,झूकना नहीं बस आगे ही बढ़ते है जाना,

अब तक था अँधेरों में अब चला ज़िंदगी की उजास में हूँ,


न किसी की आस है अब, और न किसी और की तलाश,

मैं खुद बन कर अपना साथी चल रहा खुद के साथ में हूंँ,


मंजिल मिलेगी या नहीं,नहीं जानता पर अब रुकना नहीं,

अब तक हताश कट रही थी ज़िन्दगी, अब उल्लास में हूंँ।


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