खुद से जोड़ खुद का धागा
खुद से जोड़ खुद का धागा
मन के सागर में तू एक बार डुबकी तो लगा,
खुद से जोड़कर तो देख एक बार खुद का धागा,
क्यों विस्मित है तू, खुद के लिए सोचना गलत तो नहीं,
खुद के लिए तो जीना सीख दुनिया के लिए तो बहुत भागा।
औरों की ख़्वाहिश हेतु अविराम तू भागता रहा,
हर लम्हा हर मोड़ पर बस अपना वज़ूद खोता रहा,
अपने ख़्वाब, अपनी ख़्वाहिशों को दिल में दफ़न कर,
खुद को भुलाकर खुद से दूर जिया तो आखिर क्या जिया।।
मन की दहलीज पर तम ने बना रखा है डेरा,
जहाँ से न तुझे अपना वज़ूद नज़र आता न सवेरा,
किरदार सब निभाते निभाते तेरे वास्तविक किरदार को,
ना तो कोई पहचान ही मिली और ना ही मिला कोई किनारा।।
क्यों खुद से बना रहा अब तक तू अनजान,
तलाश कर अपने वज़ूद की तू स्वयं को पहचान,
अंतर्मन में झाँक, कुछ वक्त़ तो बिता तू स्वयं के साथ,
खुद से एक मुलाक़ात कर रोशन कर अपने मन का जहान।।
फिर देखना तुझ में तेरा अक्स जो नज़र आएगा,
इस दुनिया की भीड़ से हटकर तेरी पहचान बताएगा,
कितनी अनमोल है ज़िन्दगी हर पल है कितनी ख़ूबसूरत,
अब तक तो बस काट रहा था दिन अब खुलकर जी पाएगा।।
