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Dr Mohsin Khan

Abstract

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Dr Mohsin Khan

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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बड़ी बदली हुई है फ़ज़ा ज़माने की।

चलो वजह ढूंढी जाए मुस्कुराने की।


बहुत हुआ सफ़र मंज़िल पाने का,

एक अदद कोशिश हो ठिकाने की।


बात हुई क्या ये बात सबको पता है,

फिर वजह क्या है उसे छुपाने की।


गिराने का हुनर सब जानते हैं यहाँ,

कोई ज़हमत भी तो करे उठाने की।


जलाकर बस्तियाँ महफ़ूज़ हैं ये सारे,

हमपे लगी तोहमत आग बुझाने की।


टूट के तारे किधर जाते हैं पता नहीं,

सोचते हैं हम ऐसे बिखर जाने की।


तुम तोड़ दो क़समें कोई बात नहीं,

'तनहा' अपनी ज़िद है निभाने की।



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