ग़ज़ल
ग़ज़ल
दोस्तों एक ग़ज़ल आपके नाम.......
या तो बहुत महँगे या बिलकुल मुफ़्त हैं।
उसूल मेरी जिन्दगी के बड़े ज़बर्दस्त हैं।
कुछ सीख लो हमसे भी ऐ अमीर लोगों।
जीते हैं बदहाली में हम, लेकिन मस्त हैं।
हैं हम जिस सल्तनत के बिगड़े बादशाह,
वहाँ न कोई फतह हैं न कोई शिकस्त हैं।
चाहे हो ज़माना हमारे चलन के ख़िलाफ़,
राहें मुश्किल सही, पर हम चर्बदस्त हैं।*
'तनहा' टूटा वो जो कमज़ोर हो अंदर से,
मेरे हौसले हैं बुलंद और इरादे सख़्त हैं।
*चर्बदस्त=सिद्धहस्त
