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Dr Mohsin Khan

Abstract

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Dr Mohsin Khan

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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दोस्तों एक ग़ज़ल आपके नाम.......


या तो बहुत महँगे या बिलकुल मुफ़्त हैं।

उसूल मेरी जिन्दगी के बड़े ज़बर्दस्त हैं।


कुछ सीख लो हमसे भी ऐ अमीर लोगों।

जीते हैं बदहाली में हम, लेकिन मस्त हैं।


हैं हम जिस सल्तनत के बिगड़े बादशाह,

वहाँ न कोई फतह हैं न कोई शिकस्त हैं।


चाहे हो ज़माना हमारे चलन के ख़िलाफ़,

राहें मुश्किल सही, पर हम चर्बदस्त हैं।*


'तनहा' टूटा वो जो कमज़ोर हो अंदर से,

मेरे हौसले हैं बुलंद और इरादे सख़्त हैं।


 


*चर्बदस्त=सिद्धहस्त


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