जिंदगी बनाया मैने
जिंदगी बनाया मैने
पत्थर की लकीर है, तो क्या
मिटा क्यों नहीं सकते
जो रेत बिखरी इधर उधर
कभी तो पत्थर ही थे।
आज वक्त पे अख्तियार तेरा
फलक चुनवा दो आसमाँ पे
कल शायद ना मिले
आशियाँ कहाँ था तेरा।।
सवाल तो करेंगे बहुत
जवाब से कतराना क्या
ख़ुद ही को जवाब देना
सबसे मुश्किल होता।।
हाथों की लकीरें अपनी
जब सताते गैर बन कर
छिपाए छिपते भी नहीँ
माथे की शिकनों के तरह
सुलह करता रहता हूँ रोज
खुद ही खुद के साथ
मगर शिकायत का मौका
हाथ से जाने न देता।।
एक ही जिंदगी चाहिए
जीने के लिये लेक़िन
जोड़ कर कई टुकड़ों को
जिंदगी बनाया मैंने।