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Satyendra Gupta

Abstract

4.5  

Satyendra Gupta

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समझना

समझना

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जब रीत न चले, जब गीत न चले

जब मीत न चले, जब जीत न चले

अपने साथ न चले, पराए मुंह मोड़ चले

कोई बात न चले, है रात रो पड़े

समझना क्योंकि समझने की जरूरत पड़े।


जब बोलोगे अगला बोलने नहीं देगा

जब हँसोगे अगला हंसने नहीं देगा

जब रोओगे अगला मसला नहीं सुनेगा

कमी पूछने पे अगला तुम पे बरस पड़े

समझना क्योंकि समझने की जरूरत पड़े।


कहो मदद करने की, कहेगा खुद करो

कहो साथ चलने की , कहेगा खुद चलो

कहो समझाने की , कहेगा खुद समझो

जब सब कुछ हो जायेगा ठीक ठाक

तब कहेगा , शाबाश ऐसे ही लगो लगे

समझना क्योंकि समझने की जरूरत पड़े।


कोई साथ नहीं देता, अपना साथी खुद बन

कोई साथ नहीं चलता, अपना राही खुद बनो

कोई मदद नहीं करता, अपना मदद खुद करो

कोई खुशी नहीं देता, खुद से ही खुश रहना पड़े

समझना क्योंकि समझने की जरूरत पड़े।


हार जाना ठीक है, मन से हारना मत

गिर जाना ठीक है, उठना भूलना मत

रो जाना ठीक है, हंसना भूलना मत

ठोकर खाना ठीक है, जरूरत सही चलने की पड़े

समझना क्योंकि समझने की जरूरत पड़े।


अभी कमी है मुझमें हँसने दो जिनको हंसना है

अभी पीछे हूँ मैं आगे तो एक दिन जाना है

अभी दर्द में हूँ , देने दो दर्द को सहना है

अभी तो परख रहा हूँ अपने आप को

निखरूंगा क्योंकि निखरने की जरूरत आन पड़े

समझना क्योंकि समझने की जरूरत पड़े।।


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