Satyendra Gupta

Abstract

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Satyendra Gupta

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मैं भी पिता हूँ मेरे भी शौक थे

मैं भी पिता हूँ मेरे भी शौक थे

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मैं भी पिता हूँ, मेरे भी शौक थे

लेकिन पूरा कर पाया नहीं

बच्चों की खुशियां पूरी करके

अपनी खुशियां समझता था।


मैं भी पिता हूँ, मेरे भी शौक थे

लेकिन पूरा कर पाया नहीं

बच्चे जब घूमकर आते थे देश विदेश से

मैने घूम लिया ये समझता था।


मैं भी पिता हूं, मेरे भी शौक थे

लेकिन पूरा कर पाया नहीं

बच्चों को अच्छे कपड़े दिलवाकर

मैने पहन लिया ये समझता था।


मैं भी पिता हूं, मेरे भी शौक थे

लेकिन पूरा कर पाया नहीं

बच्चों को खुश देखकर

मैं खुश हूँ ये समझता था।


मैं भी पिता हूँ, मेरे भी शौक थे

लेकिन पूरा कर पाया नहीं

उनको बेहतर देखकर 

मैं अपने को बेहतर समझता था।


मैं भी पिता हूं, मेरे भी शौक थे

लेकिन पूरा कर पाया नहीं

जमा सारी पूंजी लूटा दिया मैने

खजाना रहेगा पास मेरे ये समझता था।


मैं भी पिता हूं, मेरे भी शौक थे

लेकिन पूरा कर पाया नहीं

जिनका साथ दिया उम्र भर मैने

वो भी बुढ़ापा में साथ देंगे मेरा,

ये समझता था।


मैं भी पिता हूं, मेरे भी शौक थे

लेकिन पूरा कर पाया नही

आज बच्चे कहीं और है

हाल चाल पूछेंगे कैसे है

पिताजी ये समझता था।


मैं भी पिता हूं, मेरे भी शौक थे

लेकिन पूरा कर पाया नहीं

अंतिम समय में देंगे कंधा, 

पर कंधा भी दे पाए नहीं

कंधा देकर अंतिम बिदाई करेंगे,

ये समझता था।


मैं भी पिता हूं, मेरे भी शौक थे

लेकिन हर पिता अपने शौक करे पूरा

हर खुशियों को जी ले,मौका नहीं मिलेगा दुबारा

बच्चों के भरोसे ना रहे,

इनको होगा अपना जीवन प्यारा।


मरने पे भी गम ना हो करना ऐसा काम

अपने हमसफर का रखना हमेशा ध्यान

वरना ये पीढ़ी कहीं का नही छोड़ेंगे

जीते जी ले लेंगे आपकी जान।


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