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Satyendra Gupta

Tragedy

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Satyendra Gupta

Tragedy

लोग कहते हैं कुछ ,करते हैं कुछ

लोग कहते हैं कुछ ,करते हैं कुछ

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लोग कहते हैंं कुछ ,करते हैंं कुछ

वादा करके वादा खिलाफी करते हैंं कुछ

जब तक हम कुछ समझ पाते

तब तक लूट लेते हैं कुछ

लोग कहते हैं कुछ ,कर जाते हैं कुछ।


अपना बोलकर पराया बन जाते हैं कुछ

झूठ बोलकर धोखा दे जाते हैं कुछ

पकड़े जाने पर मजाक किया था, कह जाते हैं कुछ

ना जाने किसपे करू विश्वास ,मूर्ख बना जाते हैं कुछ

लोग कहते हैं कुछ, कर जाते हैं कुछ


दिल तो तब दुखता है,जब आंसू निकाल देते हैं कुछ

शब्द होते हैं कुछ कहने को ,पर निःशब्द कर जाते हैं कुछ

मुंह पे बड़ाई हैं करते, पीठ पीछे बुराई कर जाते हैं कुछ

सच्चाई जब आ जाए सामने ,वही मुंह छुपाते हैं कुछ

लोग कहते हैं कुछ, कर जाते हैं कुछ।


झूठ बोलकर भी कसम खाकर सच ब

ताते हैं कुछ

एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोल जाते हैं कुछ

अपनी मजबूरियां सुनाने पे मजाक उड़ाते हैं कुछ

वक्त बेवक्त न जाने क्यों तन्हा छोड़ जाते हैं कुछ

लोग कहते हैं कुछ, कर जाते हैं कुछ।


जीवन का भरोसा नही लेकिन जीते जी मार जाते हैं कुछ

जब पड़े जरूरत उनको मीठी  बातों में फसाते हैं कुछ

आशाओं का पंख लगाकर पंख काट जाते हैं कुछ

मुझे फूल समझकर डाली से अलग कर जाते हैं कुछ

चांद की शीतलता दिखा सूरज की गर्मी में जलाते हैं कुछ

लोग कहते हैं कुछ, कर जाते हैं कुछ।


इंसान बनकर इंसानियत का गला घोट जाते हैं कुछ

अपना बनकर पराए सा एहसास दिला जाते हैं कुछ

लगता हैं की इंसान बनकर गलत किया मैने

मजबूरी में हैवान बना जाते हैं कुछ।


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