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Arti Kumari

Tragedy

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Arti Kumari

Tragedy

वह लड़की

वह लड़की

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वह लड़की

आती है रोज

गन्दे बोरे को

अपने कांधे पर उठाए

‘वह’ लड़की’

और चुनती है

अपनी किस्मत-सा

खाली बोतल, डिब्बे

और शीशियां

अपने ख्वाबों से बिखरे

कुछ कागज़ के टुकड़ों को

और ठूंस देती है उसे

जिंदगी के बोरे में


गरीबी की पैबन्दों का

लिबास ओढ़े

कई पाबन्दियों के साथ

उतरती है

संघर्ष के गन्दे नालों में

और बीनती है

साहस की पन्नियाँ

और गीली लकड़ी-सी

सुलगने लगती है

अन्दर ही अन्दर

जब देखती है

अपनी चमकीली आँखों से

स्कूल से निकलते

यूनिफाॅर्म पहने बच्चों को!


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